14 December, 2017

लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी

अलमारियों में पुस्तकें सलवार कुरते छोड़ के।
गुड़िया खिलौने छोड़ के, रोये चुनरियाओढ़ के।
रो के कहारों से कहे रोके रहो डोली यहाँ।
माता पिता भाई बहन को छोड़कर जाये कहाँ।
लख अश्रुपूरित नैन से बारातियों की हड़बड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।

हरदम सुरक्षित वह रही सानिध्य में परिवार के।
घूमी अकेले कब कहीं वह वस्त्र गहने धार के।
क्यूँ छोड़ने आई सखी, निष्ठुर हुआ परिवार क्यों।
अन्जान पथ पर भेजते अब छूटता घर बार क्यों।।
रोती गले मिलती रही, ठहरी नही लेकिन घड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।

आओ कहारों ले चलो अब अजनबी संसार में।
शायद कमी कुछ रह गयी है बेटियों के प्यार में।
तुलसी नमन केला नमन बटवृक्ष अमराई नमन।
दे दो विदा लेना बुला हो शीघ्र रविकर आगमन।।
आगे बढ़ी फिर याद करती जोड़ती इक इक कड़ी।
लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर‎ .

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  2. वाह!!सुंदर बिदाई दृश्य .....।।

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  3. आदरणीय बहुत ही सुंदर या कहूँ अनुपम लेखन मुग्ध कर देने वाले भाव और बेबाक शैली |
    आओ कहारों ले चलो अब अजनबी संसार में।
    शायद कमी कुछ रह गयी है बेटियों के प्यार में।
    तुलसी नमन केला नमन बटवृक्ष अमराई नमन।
    दे दो विदा लेना बुला हो शीघ्र रविकर आगमन।।
    आगे बढ़ी फिर याद करती जोड़ती इक इक कड़ी।
    लल्ली लगा ली आलता लावा उछाली चल पड़ी।।--
    आँखें नम करते दृश्य मन को भावुक कर रहे हैं | अप्रितम लेखन के लिए बधाई आदरणीय -- नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं | आपकी लेखनी का प्रवाह बना रहे |
    P

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  4. उत्कृष्ट व सराहनीय प्रस्तुति.........
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाओ सहित नई पोस्ट पर आपका इंतजार .....

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  5. With you Happy New Year

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